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Essay on Diwali in Hindi – Kunji

Essay on Diwali in Hindi

दीवाली/दीपावली पर निबंध | Essay on Diwali in Hindi

‘‘जन-जन ने हैं दीप जलाए, लाखों और हज़ारों ही।
धरती पर आकाश आ गया, सेना लिये सितारों की।’’

भूमिका: ‘दीपावली’ का अर्थ होता है- ‘दीपों की आवली या पंक्ति’ यह त्योहार कार्तिक मास की अमावस को मनाया जाता है। यह सब धर्मों का सबसे बड़ा त्योहार है। इस दिन लोग अमावस की काली रात को असंख्य दीपक जलाकर पूर्णिमा में बदल देते हैं।

इतिहास: इस त्योहार को मनाने के कारणों में सबसे प्रमुख कारण है इस दिन भगवान श्री राम लंका के राजा रावण को मारकर तथा वनवास के चैदह वर्ष पूरे कर सीता और लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीये जलाये थे।

जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी तथा आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद और अद्धैत वेदान्त के संस्थापक स्वामी रामतीर्थ को इसी दिन निर्वाण प्राप्त हुआ था। सिक्ख भाई भी दीवाली को बड़े धूमधाम से मनाते हैं क्योंकि छठे गुरू हरगोबिंद सिंह जी 52 राजाओं को ग्वालियर की जेल से मुक्त करवाकर लाए थे। इन सबकी पवित्र याद में सब धर्मों के द्वारा यह दिन बड़े सम्मान से मनाया जाता है। दीपावली से दो दिन पूर्व ‘धनतेरस’ मनाई जाती है। इस दिन लोग नए बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं। अगले दिन चैदस को घरों का कूड़ा-कर्कट बाहर निकाला जाता है और छोटी दीवाली मनाई जाती है क्योंकि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था।

मनाने की तैयारी: दीपावली से कुछ दिन पहले ही लोग घरों की लिपाई-पुताई करवा कर उन्हें चमकाना शुरू कर देते हैं घर, बाज़ार सजाना शुरू कर देते हैं। मिठाइयाँ, पटाख़े और सजावट की वस्तुओं से बाज़ार भर जाते हैं।

‘‘होली लाई पूरी, दीवाली लाई भात।’’

मनाने का ढंग: अमावस्या के दिन दीवाली मनाई जाती है। घरों में रोशनी की जाती है। रात को लक्ष्मी-पूजा की जाती है। सगे-संबंधियों और मित्रों को मिठाइयाँ तथा उपहार भेजे जाते हैं। बच्चे बम तथा पटाख़े चलाते हैं। व्यापारी लोग लक्ष्मी-पूजा के बाद नये बही-खाते शुरू करते हैं। अमृतसर की दीवाली की शोभा अनोखी होती है।

दीवाली पूरे वातावरण में उमंग, उल्लास, उत्साह और नवीनता का संचार करती है।

‘‘दाल रोटी घर की, दीवाली अमृतसर की।’’

संदेश: यह त्योहार हमें अंधेरे पर प्रकाश की विजय और बुराई पर अच्छाई की जीत की प्रेरणा देता है। कहीं-कहीं पटाखों को लापरवाही से जलाते समय बच्चों के हाथ-पाँव जल जाते हैं। ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का पालन करते हुए अधिकतर जैन लोग पटाख़े नहीं चलाते ताकि जीव हत्या न हो। ऐसा करने से धन की हानि पर भी अंकुश लगता है।

उपसंहार: जिन महापुरूषों की याद में यह दीपावली पर्व मनाया जाता है, हमें उनके आदर्शों पर चलना चाहिए। यह त्योहार सबके मनों में ज्ञान का उजाला भरे इसी शुभेच्छा के साथ हमें इसे मनाना चाहिए।

Contributed by: Sudha Jain

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Kunji Team

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