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Essay on Baisakhi in Hindi – Kunji

Essay on Baisakhi in Hindi

आँखों देखा मेला: वैशाखी पर निबंध (Essay on Baisakhi in Hindi)

भूमिका (Role): भारत त्योहारों का देश है। इन त्योहारों को मनाने के लिए जगह-जगह मेले लगते हैं। मैं और मेरा भाई भी इस वर्ष वैशाखी पर अपने पिता जी के साथ वैशाखी का मेला देखने गए। रास्ते में मेरी तरह बहुत सारे बच्चे अपने माता-पिता जी के साथ मेला देखने जा रहे थे। चलते-चलते पिता जी ने हमें बताया कि वैशाखी का त्योहार नवीन उत्साह और उमंग लेकर आता है। किसानों की वर्ष भर की मेहनत जब सफल होती है तब उनके पैरों में अपने आप थिरकन आ जाती है। पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द जब एक चक्कर पूरा करती है उसी दिन वैशाखी होती है। नया देसी वर्ष भी इसी दिन शुरू होता है। स्कूलों का सत्र भी अप्रैल के महीने (वैशाख मास) से शुरू होता है।

इतिहास (History): इस त्योहार का संबंध महान ऐतिहासिक घटनाओं के साथ भी जुड़ा हुआ है। इस दिन महात्मा बुद्ध को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। 1699 ई. को इस दिन सिक्खों के दसवें गुरू श्री गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।

ऐतिहासिक घटनाएं (Historical Events): 1919 ई. को वैशाखी वाले दिन अमृतसर के जलियाँवाले बाग में अंग्रेज़ अफ़सर जनरल ओडवायर ने निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलाई थीं। इन्हीं शहीदों की याद में इस दिन श्रद्धांजलि समारोह भी आयोजित किए जाते हैं।

मेले में जाना (Go to the fair): पिता जी की बातें सुनते-सुनते हम मेले में पहुँच गए। मेले में भिन्न-भिन्न प्रकार के स्टाॅल लगे हुए थे। कहीं जादूगर अपना जादू दिखा रहे थे, कहीं लोग निशानें लगा रहे थे, कहीं खिलौनों तथा मिठाइयों के स्टाॅल बच्चों को आकर्षित कर रहे थे कहीं बच्चे अपने माता-पिता के साथ झूला झूल रहे थे। हमने भी झूले का आनन्द लिया। फिर चाट-पापड़ी खाई। मेले में बहुत ही चहल-पहल थी। लाउडस्पीकर में लोक-गीतों की आवाज़ सुनकर हम उसकी तरफ खिंचे चले गए। वहाँ स्टेज पर गाए जाने वाले लोक-गीतों का आनन्द लिया।

खरीदारी करना (Shopping): मेले में औरतें तथा बच्चे ज़ोर-ज़ोर से खरीदारी कर रहे थे। पिता जी ने मुझे पैसे जमा करने के लिए गुल्क और खाने के लिए जलेबी दिलवाई और बताया कि जलेबी वैशाखी की विशेष मिठाई है। इस तरह जलेबी खाते-खाते हम मेले में आगे बढ़ने लगे। मेले में एक तरफ पहलवानों की कुश्ती चल रही थी।

घर वापसी (Return Home): सूरज ढलने ही वाला था मैं पिता जी के साथ घर की तरफ जल्दी-जल्दी पग भरने लगी। रास्ते में हमने देखा कि वहाँ पशुओं की मण्डी लगी हुई थी। लोग खरीदारी करके घरों को वापिस लौट रहे थे। रास्ते में भीड़ बहुत बढ़ रही थी। हम खुशी-खुशी लौट आए। मेला देखने का मेरा यह पहला एवं अविस्मरणीय अवसर था।

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Kunji Team

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